सोमवार, 15 फ़रवरी 2016

दहेज़: बेटी पैदा करने का ब्याज

हमारे समाज मे बढ़ती हुयी कुप्रथाओं में दहेज प्रथा भी एक ऐसी कुप्रथा है, जो बहुत पहले से चली आ रही है। आज के समय में इस दहेज प्रथा ने एक ऐसा भीषण रूप ले लिया है जिसे खत्म करना ना के बराबर हो गया है। दहेज एक ऐसा कीड़ा है जो बेटियों के माँ-बाप को नोच-नोच कर खाता है। आज के समय मे दहेज़ एक ऐसी आग बन गयी है, जिसमें आए दिन बहुएँ जला दी जाती हैं। बेटियों के माता-पिता लड़कियों के जन्म से ही एक एक पैसे जोड़-जोड़ के रखना शुरू कर देते हैं कि ये लड़की के ब्याह मे काम आएगा। खुद वो अपनी जरूरतें नहीं पूरी कर पाते हैं लेकिन बेटियों के ब्याह की तैयारी मे वो बेटियों के बचपन से ही लग जाते है, तब कहीं जाकर वो इतना इकट्ठा कर पाते है कि जिससे कि वो अपने बेटी को विदा कर सकें। हमारे देश मे गाँवों में बाल विवाह का एक महत्वपूर्ण कारण दहेज की मांग है। गाँवों मे जिन घरों मे एक से अधिक बेटियाँ होती है, उनके माँ बाप को बेटी की शादी की चिंता तब से ही सताने लगती है, जबसे वो थोड़ा समझने के लायक होती है। कि एक बेटी की शादी कर दें तो दूसरी की शादी के लिए दहेज की तैयारी फिर से शुरू करें और बचपन में पढ़ाई लिखाई छोड़ कर घर का चौका चूल्हा संभालना सिखाया जाने लगता है। 

जिन घरों मे बेटियाँ होतीं हैं, उनके माँ-बाप दहेज देने के लिए परेशान होते हैं लेकिन जिन घरों मे लड़के होते हैं, उनके माँ बाप बचपन से ही अपनी बेटों की कीमत तय करने लगते है कि बड़ा होकर बेटा घर मे ये दहेज लाएगा। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है वैसे वैसे माँ बाप घर मे ही बेटे की शादी में दहेज की लिस्ट बनाना मन मे ही शुरू कर देते हैं। आज के समय मे शादी नहीं होती बल्कि बेटे बेचे जाते हैं क्योंकि जिन शादयों मे लेन-देन की बात हो, दहेज लिया जाये, वो शादी शादी नहीं कहलाती। शादी तय करते समय ही बेटों के माँ-बाप अपने बच्चों के ऊपर किए गए सारे खर्चों लिस्ट थमा देते है कि 'अजी हमने अपने बेटे को इतना पढ़ाया लिखाया है..!' मतलब जो भी खर्चे उन्होने अपने बेटे पर किए हैं वो सारे वसूलने की इच्छा रखते हैं। फिर चाहे बेटियों के पिता उतना देने मे सक्षम हो या नहीं दहेज की माँग कमर पीठ सब तोड़ देती हैं। हमारे देश में दहेज की वजह से न जाने कितने ही बहुओं को आए दिन प्रताड़ित किया जाता है। आए दिन सास ससुर के ताने। प्रताड़णा। पति की मार और पता नहीं क्या-क्या? और वो भी सिर्फ दहेज के कारण। क्या बेटियों के माँ-बाप पैसे छापने की मशीन हैं या दहेज के लोभी जितनी माँग करते रहेंगे, उतना वो देते रहेंगे। क्या हमारे देश मे दहेज की प्रथा कभी खत्म नहीं होगी? क्या हमरे समाज मे बहुओं की कोई इज्जत नहीं होगी? क्या कभी हमारे देश मे हमारे समज मे दहेज के लोभियो द्वारा हमारे देश कि बेटियाँ जिंदा जलती रहेंगी? क्या कभी शादी के नाम पर की जा रही सौदेबाजी का कभी अंत नहीं होगा? क्या बेटियो का दर्द कभी खत्म नहीं होगा? शायद बेटियों को भगवान ने इतना सहनशील तभी बनाया है क्योंकि उन्हें पता होगा की हमारे समाज मे उन्हें ऐसे ही प्रताड़ित किया जाएगा। काश! हमारे देश मे दहेज प्रथा का अंत हो जाए तो कोई भी बाप अपनी बेटी को बोझ नहीं समझेगा और ना ही हमारे देश मे बेटियों का अपमान होगा और न ही उन्हे जिंदा जलाया जाएगा। कोई उन्हें इस कारण कोख में नहीं मारेगा। शायद तब हमारे देश मे बेटियाँ भी खुल कर चैन की सांस ले पाएँ, जब उन्हे उनके समाज मे वो इज्जत मिल पाये जिनकी वो हकदार हैं।

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