कल रात जबसे मैं इस ब्लॉग से जुड़ी हूँ, तभी से मेरे मन मे बहुत कुछ चल रहा है कि क्या लिखूँ। मैं एक छोटे से कस्बे की रहने वाली हूँ, जिसे हम गाँव भी कह सकते हैं। बचपन से ही मेरी रुचि पढ़ाई और खेल मे ज्यादा थी। पर जैसा की हम सभी जानते हैं कि गाँव में शिक्षा का कितना अभाव है। आज भी ज़्यादातर गाँव में विद्यालय तो है लेकिन महाविद्यालय नहीं हैं, जिससे बच्चों का भविष्य आज भी नहीं बन पा रहा है। ज़्यादातर गाँव मे आठवीं या बारहवीं से आगे शिक्षा का कोई साधन उपलब्ध नहीं है, जिससे चाहते हुये भी लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा मुहैया नहीं करा पाते हैं और उनकी शिक्षा अधूरी ही रह जाती है। और अगर आसपास के शहरों में महाविद्यालय हैं भी तो माँ-बाप समाज के डर से या फिर या अपने बच्चों को असुरक्षित समझ के घर से दूर पढ़ने के लिए नहीं भेजते हैं और वो बारहवीं तक ही सिमट के रह जाते हैं और चाहकर भी स्नातक तक की भी शिक्षा नहीं प्राप्त कर पाते हैं।
आज भी हमारे समाज में ऐसे बहुत से पिछड़े इलाके है, जहाँ आज भी लोग शिक्षा से बहुत दूर है। जिसे शिक्षा के बारे पता तो है लेकिन वो उसे जरूरी नहीं समझते है या फिर असुरक्षा के डर से शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्कूल नहीं भेजते हैं। हमारे समाज में आए दिन अखबारों में ज़्यादातर खबरें लड़कियो की असुरक्षा को लेकर ही होती हैं। आज गाँव से ज्यादा शहरों मे लड़कियाँ सुरक्षित नहीं हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार इनके लिए कोई मजबूत कदम नहीं उठा रही है पर फिर भी कहीं न कहीं कुछ तो ऐसा है, जिससे आज भी हमारे देश मे लड़कियाँ सुरक्षित नहीं है। इस वजह से ज़्यादातर बलिदान लड़कियों को ही देना पड़ता है और फिर या तो उनको घर के कामों में लगा दिया जाता है या फिर उन्हें अधूरी शिक्षा के साथ शादी के बंधन मे बाँध दिया जाता है।
आज भी ऐसे बहुत से गाँव है, जहाँ एक भी स्कूल नहीं है, सबसे पहले सरकार को वहाँ स्कूलो की व्यवस्था करवानी चाहिए। सरकार स्कूल तो खुलवा रही है पर वहाँ जहाँ पहले से ही स्कूल है। और जहाँ स्कूल हैं, वहाँ तो हमें शिक्षा को बढ़ावा देना ही है पर हम ये क्यूँ भूल जाते हैं कि हमें सिर्फ कुछ गाँवों को नहीं बल्कि हर एक छोटी से छोटी जगह को भी शिक्षित करना है, तभी हमारा देश तरक्की के रास्ते पर चलना शुरू करेगा। जिन गाँवों में प्राथमिक विद्यालय हैं भी उनकी हालत इतनी जर्जर है कि बस वो नाम के स्कूल रह गए है न तो वह पढ़ने के साधन है और ना ही पढ़ने के लिए उपयुक्त शिक्षक। हमारा देश इतना तरक्की पर होने बावजूद भी गाँवों को पिछड़ेपन से नहीं निकाल पा रहा है, इसका जिम्मेदार सिर्फ हमारी सरकार व्यवस्था ही नहीं है बल्कि इसके सबसे बड़े जिम्मेदार हम खुद है। क्योंकि सरकार हर गाँव हर शहर तक तो नहीं पहुँच सकती है।
सरकार से ज्यादा हम लोगों के करीब हैं। जो लोग शिक्षा के महत्व को नहीं समझते या फिर समझते हुये भी समझना नहीं चाहते हैं तो हमारा ये कर्तव्य बनता है कि हम लोगो को समझाये। अगर फिर भी ना समझें तो हमें उन्हे उनके जीवन में अशिक्षा जैसी सबसे बड़ी कमी का एहसास दिलवाना चाहिए। क्योंकि अगर हम अपने देश अपने समाज के प्रति जागरूक हैं, तभी हमारा देश भी हमारे प्रति जागरूक कदम उठाएगा। अगर हम देश को उन्नति के रास्ते तक ले जायेंगे तो हमारा देश हमें हमारी मंजिल तक पहुँचाएगा। और ये तभी संभव है, जब हमारा देश पूर्ण रूप से शिक्षित होगा क्योंकि पढ़ेगा इंडिया तभी तो बढ़ेगा इंडिया।
हम गाँव को सुंदर सपने सरीके मानते है। लेकिन उसकी परतों को की तह में वे ही जा सकते है जिन्होंने उसको जिया है या जी रहे है। इसके अलावा स्त्री की नज़र से गाँव देखना रोचक रहेगा। और हाँ लिखिए और लिखती रहिये।
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएँ
संदीप
धन्यवाद संदीप जी
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